भारत में जब भी ऐतिहासिक,सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित और प्राचीन मस्जिदों का जिक्र होता है, घूम-फिर कर बात दिल्ली की जामा मस्जिद, कोलकाता की नाखुदा और हैदराबाद की मक्का मस्जिद तक आकर खत्म हो जाती है, जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं.देश में अनेक सुंदर, ऐतिहासिक और प्राचीन मस्जिदें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को इल्म है. इन मस्जिदों के बारे में बहुत कम लिखा-पढ़ा गया है.ऐसी ही कुछ मस्जिदों से पाठकों को रू-ब-रू कराने के लिए आवाज द वॉयस के मलिक असगर हाशमी ने यह सिलसिला शुरू किया है. इसकी दूसरी कड़ी के रूप में आज बात मिनिकॉय यानी लक्ष्यद्वीप के एक द्वीप के जामा मस्जिद की.
लक्षद्वीप, दरअसल खूबसूरत द्वीपों का एक समूह है. इसके उथले तट और समुद्री जीवन बेहद समृद्ध और खूबसूरत हैं. इसका एक द्वीप मिनिकॉय है, जो पश्चिम की ओर स्थित विशाल लैगून है. इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है.
मिनिकॉय में एक ज्वारीय तालाब है जो स्थानीय और बाहरी दोनों यात्रियों को सुंदर एहसास दिलाता है.यहां एक लाइट हाउस भी है जिसे 1885 में अंग्रेजों ने विकसित किया था. भारत की स्वतंत्रता तक यह ब्रिटिश नियंत्रण में था. इसकी ऊंचाई लगभग 300 फीट है.
इस लाइट हाउस के उच्चतम बिंदु से लक्षद्वीप द्वीप समूह, अरब सागर और वर्जिन द्वीप समूह को देखा जा सकता है. यह नारियल के जंगलों और सफेद रेत से घिरा हुआ है.
लाइट हाउस के 100 साल पूरे होने पर 1 फरवरी 1985 को इसपर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था. खैर अब बात मिनिकॉय की जामा मस्जिद की.

इसे प्राचीन पत्थरों से निर्मित किया गया है, जो इतने वर्षों बाद भी मस्जिद में संरक्षित है.इस मस्जिद से जुड़ी कहानी यह है कि एक अरब व्यापारी को अल्लाह ने सपने में इस्लाम का प्रसार करने के लिए कहा और वह अपनी यात्रा पर निकल पड़ा. रास्ते में उसका जहाज बर्बाद हो गया और वह द्वीप पर पहुंच गया.

फिर यहां उसने मंगलोरियन पत्थरों से ढकी मस्जिद की छत बनाई. इस मस्जिद के डिजाइन केरल की मस्जिदों से मिलते जुलते हैं. मस्जिद की छत केरल की स्थापत्य शैली की याद दिलाती है.
लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप की जामा मस्जिद देखने में बहुत प्रभावशाली है. इसकी खूबसूरती के चलते ही पर्यटकों के लिए भी यह बड़े आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.
यहां आने पर पर्यटक मस्जिद आना नहीं भूलते. मिनिकॉय कोच्चि से 398 किमी की दूरी पर स्थित द्वीप है.
साभार: आवाज़ द वॉइस